वैसे तो देश में भगवान श्रीकृष्ण के कई चमत्कारी मंदिर हैं। उनसे जुड़े किस्से कहानियां किसी को भी हैरान कर देते हैं। लेकिन रतलाम का द्वारकाधीश मंदिर भी कुछ कम नहीं है। इस मंदिर से जुड़ी कहानी हर किसी को हैरान कर देती है। शहर के बीचों-बीच सुनारों की गली में मौजूद ये द्वारकाधीश मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इस मंदिर में जो भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति स्थापित है वो बड़ी चमत्कारी मानी जाती है। द्वारकाधीश के मुख्य मंदिर की शैली जैसे बने इस मंदिर में साधुओं की जमात से ली गई प्रतिमा शहर के पालीवाल मारवाड़ी ब्राह्मण समाज द्वारा स्थापित की गई थी।
ऐसी मान्यता है कि स्थापना के बाद से हर रात द्वारकाधीश की ये मूर्ति मंदिर से गायब हो जाती और अगले दिन उन्हीं साधुओं के पास मिलती, जिनसे लेकर इस मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया था। कई सालों तक ये सिलसिला चलता रहा। इसके बाद इस मर्ति को अभिमंत्रित करवाया गया। तभी से ही भगवान द्वारकाधीश यहां विराजित हैं और लोग दूर-दूर से इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। खासतौर पर कृष्ण जन्माष्टमी पर तो भक्तों का तांता लग जाता है।
मंदिर की स्थापना करने वाले काशीराम की छठी पीढ़ी की कांता (लल्लीबाई) और इनके दो बेटे योगेश व मुकेश पालीवाल का परिवार मंदिर की व्यवस्था संभालता है। पालीवाल परिवार के जिन पांच पीढ़ियों के लोगों ने मंदिर को संभाला उनकी तस्वीरें भी मंदिर परिसर में लगी हैं। परिवार के सदस्य ही पूजा-पाठ और आरती करते हैं।
मंदिर में खास
मुख्य द्वारकाधीश मंदिर की शैली के अनुरूप यहां सात गोलाईनुमा दरवाजे हैं। वहीं भगवान की मूर्ति काले पत्थर से बनी है। हर रोज भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है। रात में भगवान के शयन के लिए गर्भ गृह में एक छोटा पलंग व शयन के वस्त्र भी रखे जाते हैं।
सात द्वार के बाद स्थापित है प्रतिमा
स्वर्णनगरी रतलाम में भगवान द्वारिकाधीश की प्रतिमा ठीक उसी तरह स्थापित है जैसी गुजरात के द्वारिका मंदिर में. यहां भी द्वारिका की तरह भगवान के दर्शन करने के लिए सात द्वार पार करके जाना पड़ता है. भगवान के चमत्कारों पर आज भी लोग भरोसा करते हैं और कहते हैं यहां आकर मांगी गई मन्नत पूरी होती है